अब तो अपने ही हुए दुश्मन,दोस्त कंहा हैं।
लोग तो हैं पैसो के दीवाने इंसानियत तू कहा हैं।
दर्द से थककर तो मेंने कलम छोड़ दिया था,
अब पूछ रहा हूँ "आदिल"को की अब वो दर्द कहाँ हैं।
आतंकवादी उडाते हैं गुलाल लहू की ,
शान्ति,उन्नती और प्यार के चमन सा भारत कहाँ हैं।
देश के हीरो भी जीरो हो कर बैठ गए हैं,
शूरवीरों से पूछो की उनका शुरातन कहाँ हैं।
अब तो गांधीगिरी नही बलके शिवाजी या भगतसिंह गिरी चाहिए,
लेकिन कहो मुझसे की इस ज़माने में शिवाजी और भगतसिंह कहाँ हैं।
"बस अब तो बहोत हो गया"कहेते तो मैंने कितनो को सुना,
ओंन ध स्पॉट फेंसला करे ऐसे वीर अब कहाँ हैं।
सोते हो तो जग उठ्येगा मेरी इस ग़ज़ल से,
फ़िर न कहें ना की खून खौल उठे ऐसे अल्फाज़ कहाँ हैं।
ये तो देखा न गया इसलिए तो कलम उठा ली,
वरना शस्त्र उठाने की प्रथा हमारे में कहाँ हैं।
काट खायी हुई तलवारे भी हाथ आने से डरती हैं,
पूछती हैं 'वीरों जेसे हाथ तुम्हारे कहाँ हैं।
में तो "प्रेम"हूँ और प्रेम करना जनता हूँ,
लेकिन आज प्रेम करने के लिए लोग अपने कहाँ हैं।
एक श्रधांजलि अर्पण करू तो इस ग़ज़ल से उन मुंबई के शहीदों को,
पूछते हैं सवाल उनकी आत्मा के,उनके जवाब कहाँ हैं,
"हम तो मरमिटे उन राक्षसों के हाथ,धुंध रहे हैं उस राम को
जो राक्षसों को maarkar, देश बचाकर,हमारी आत्मा को शान्ति दे ऐसे "हे राम"
अब तू कहाँ हैं।"
-------------------------------jai hind- ----------------------------------------
-"प्रेम"
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