Saturday, April 26, 2008

दीवाली

"बागकी बात, बाग का माली ही समजे,

फूलों की खुशबू को भौरे ही समजे;

चुभन तो बहोत होती होगी उन कांटो को,

पर फूलों का दर्द तो जुलती डाली ही समजे।

हमारी मौत पर तो खुदा भी रोने लगा, पर वो बेवफा नही,

सोचनेवाले उसे इक बारिश समजे।

ये खुदा ने भी अजीब की रित बनाईं ,

दिए का दिल जले और लोग उसे दीवाली समजे......................................."प्रेम"

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